विनिर्दिष्ट अनुतोष (संशोधन) अधिनियम, 2018
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सिविल कानून

विनिर्दिष्ट अनुतोष (संशोधन) अधिनियम, 2018

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 02-Jul-2024

परिचय:

  विनिर्दिष्ट अनुतोष (संशोधन) अधिनियम , 2018

  विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गए

  राष्ट्रपति की स्वीकृति

   1अगस्त 2018

   प्रवर्तन तिथि

  1 अक्तूबर 2018

   अनुशंसाएँ  

 विशेषज्ञ समिति ने श्री आनंद देसाई के नेतृत्व में सरकार द्वारा बनाए गए विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की जाँच प्रारंभ की।

   उद्देश्य

  व्यापार करने में सुगमता सुनिश्चित करने के लिये

 प्रमुख संशोधन:

  • धारा 6: अचल संपत्ति से निष्कासित व्यक्ति द्वारा वाद-
    • इस धारा में “वह या कोई व्यक्ति” शब्दों के उपरांत “जिसके माध्यम से वह या कोई व्यक्ति उस पर कब्ज़ा रखता था” शब्द जोड़े गए हैं। वर्ष 2018 के संशोधन अधिनियम से पूर्व, अधिनियम की धारा 6 में बलात्, कब्ज़े से हटाए गए व्यक्ति या उसके माध्यम से दावा करने वाले किसी व्यक्ति को इस तरह के निष्कासन के लिये वाद चलाने की अनुमति थी।
    • “जिसके माध्यम से वह या कोई व्यक्ति उस पर कब्ज़ा रखता था” शब्द को जोड़ने से प्रावधान का दायरा विस्तृत हो जाता है और उस व्यक्ति को वाद प्रारंभ करने का अधिकार प्रदान करता है जिसके माध्यम से पीड़ित पक्ष का अचल संपत्ति पर कब्ज़ा रहा था।
  • विवेकाधीन एवं वैधानिक उपाय:
    • धारा 10: धारा 10 के स्थान पर नई धारा के प्रतिस्थापन ने विशिष्ट पालन को लागू करना अनिवार्य बना दिया, जो न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति से अधिक, अनिवार्य कर्त्तव्य में परिवर्तित हो गया। विशिष्ट पालन को धारा 11(2), धारा 14 और धारा 16 के प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिये, जो कुछ अपवादों तथा शर्तों को रेखांकित करता है, जहाँ विशिष्ट पालन को लागू नहीं किया जा सकता है।
    • धारा 11: “संविदा न्यायालय के विवेकानुसार हो सकती है” शब्द को “संविदा करेगा” शब्द से प्रतिस्थापित किया गया है। इस संशोधन के माध्यम से, विशिष्ट निष्पादन लागू करने के लिये मार्गदर्शन देने हेतु, न्यायालय के विवेकाधिकार को हटा दिया गया है।
  • धारा 14: संविदा विशेष रूप से लागू करने योग्य नहीं:
    • इस धारा को एक नई धारा द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है और संशोधन में कहा गया है कि प्रतिस्थापित निष्पादन, सतत् कर्त्तव्य से संबंधित संविदा, किसी पक्ष की व्यक्तिगत योग्यता पर निर्भर संविदा और निर्धारणीय प्रकृति के संपर्कों को विशेष रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।
  • विशेषज्ञ सहायता:
    • धारा 14A को शामिल करने का यह प्रावधान है कि न्यायालय किसी वाद में शामिल विशिष्ट मुद्दों को हल करने के लिये एक या अधिक विशेषज्ञों की राय ले सकते हैं। विशेषज्ञ की राय न्यायालय के अभिलेखों का भाग बन जाती है और पक्षों को न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से विशेषज्ञ से पूछताछ करने का अधिकार है।
  • सीमित देयता भागीदारी (LLP):
    • धारा 15 में खंड (fa) को सम्मिलित करने से यह स्पष्ट होता है कि एक नव एकीकृत LLP अपने घटक LLP में से किसी एक के साथ की गई संविदा का विशिष्ट निष्पादन प्राप्त कर सकता है।
    • धारा 19 में खंड (ca) को सम्मिलित करने से यह स्पष्ट होता है कि किसी संविदा का विशिष्ट निष्पादन किसी नव एकीकृत LLP के विरुद्ध उसके किसी घटक LLP के साथ किये गए अनुबंध के लिये लागू किया जा सकता है।
  • अनुतोष हेतु व्यक्तियों पर प्रतिबंध:
    • धारा 16 के खंड (a) में कहा गया था कि विशिष्ट निष्पादन को उस व्यक्ति के पक्ष में लागू नहीं किया जा सकता है जो इसके उल्लंघन हेतु क्षतिपूर्ति का अधिकारी नहीं है तथा जिसे उस व्यक्ति द्वारा प्रतिस्थापित किया गया जिसने धारा 20 के तहत प्रतिस्थापित निष्पादन प्राप्त किया है।
    • खंड (c) के तहत विशिष्ट निष्पादन चाहने वाले पक्ष को केवल उसे सिद्ध करना होगा तथा उसे दलीलों में इसका दावा करने की आवश्यकता नहीं है और यदि पक्षकार दावा करने में विफल रहते हैं तो न्यायालय अनुतोष देने से प्रतिषेध नहीं कर सकता है।
  • प्रतिस्थापित पालन:
    • संशोधन में धारा 20 के स्थान पर नई धारा प्रतिस्थापित करने का प्रावधान किया गया। 
    • संशोधन ने विशिष्ट निष्पादन को स्वीकृति देने या अस्वीकार करने के न्यायालय के विवेकाधिकार को समाप्त कर दिया।
    • उल्लंघन के कारण, पीड़ित पक्ष अब किसी तीसरे पक्ष या उसकी किसी एजेंसी से प्रतिस्थापित पालन की मांग कर सकता है और वह उस पक्ष से प्रतिस्थापित पालन प्रदान करने से जुड़ी लागत भी वसूल सकता है जिसने समझौते का उल्लंघन किया है। ऐसा पालन केवल समझौते का उल्लंघन करने वाले (चूककर्त्ता) पक्ष को न्यूनतम 30 दिनों का नोटिस देने पर ही प्राप्त किया जा सकता है। हालाँकि प्रतिस्थापित पालन तब लागू नहीं होगा जब पक्षों के पास ऐसी संविदा हो जिसमें अन्यथा कहा गया हो।
  • आधारभूत ढाँचा परियोजनाएँ:
    संशोधन द्वारा अधिनियम में धारा 20a, 20b और 20c सम्मिलित की गई:
    • संशोधन द्वारा अधिनियम में शामिल की गई अनुसूची में निर्दिष्ट आधारभूत ढाँचा परियोजनाओं से संबंधित अनुबंधों हेतु धारा 20A में विशेष प्रावधान किये गए हैं। यह किसी सिविल न्यायालय को ऐसी आधारभूत ढाँचा परियोजनाओं के संबंध में निषेधाज्ञा देने से रोकता है, जहाँ ऐसी निषेधाज्ञा देने से ऐसी परियोजनाओं की प्रगति या पूर्णता में बाधा या देरी होगी।
  • धारा 20B में आधारभूत ढाँचा परियोजनाओं से संबंधित संविदाओं के संबंध में अधिनियम के तहत वाद के विचारण हेतु विशेष न्यायालयों की नियुक्ति का प्रावधान है।
    • धारा 20C इस अधिनियम के तहत दायर वादों के शीघ्र निपटान का प्रावधान करती है। इसमें कहा गया है कि प्रतिवादी को समन की प्राप्ति की तिथि से 12 महीने के भीतर वाद का निपटारा किया जाना चाहिये, जिसे कुल मिलाकर 6 महीने से अधिक की अवधि के लिये आगे बढ़ाया जा सकता है।
    • धारा 41 के अंतर्गत खंड (ha) जोड़ा गया है, जो यह प्रावधान करता है कि यदि यह किसी आधारभूत ढाँचा परियोजना की प्रगति या पूर्णता में बाधा डालता है या विलंब करता है या प्रासंगिक सुविधा के निरंतर प्रावधान में हस्तक्षेप करता है तो कोई निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती।
    • अनुसूची- भाग III के बाद परियोजनाओं की श्रेणी और अवसंरचना उप-क्षेत्रों से संबंधित एक अनुसूची सम्मिलित की गई है।
  • धारा 21: कुछ मामलों में क्षतिपूर्ति देने की शक्ति:
    • इस धारा में "या तो इसके अतिरिक्त या इसके स्थान पर" शब्दों को "इसके स्थान पर" से प्रतिस्थापित किया गया है, ताकि विशिष्ट पालन के स्थान पर क्षतिपूर्ति का दावा करने के स्थान पर संविदाओं के विशिष्ट पालन को बढ़ावा दिया जा सके।
    • धारा 25 में संशोधन, निरस्त मध्यस्थता अधिनियम, 1940 के स्थान पर मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 के अधिनियमन का प्रभाव है।